रामचरित उपाध्याय sentence in Hindi
pronunciation: [ raamecherit upaadheyaay ]
Examples
- इनमें मैथिलीशरण गुप्त, रामचरित उपाध्याय, नाथूराम शर्मा शंकर, ला.
- कवि रामचरित उपाध्याय क्या कहते हैं:-हंस गंगाकूल भी अनुकूल तेरे है नही, मानकर पहुंचे बिना तू मान सकता है नही।
- रामचरित उपाध्याय ने नारी के प्रति भारतीय संस्कृति के प्रेम और सम्मानसूचक व्यवहार के दृष्टिगत ही तो लिखा था-अबला कहते हैं अर्द्घांगिनी को, नीच कहे मूढ हैं।
- जिस गोपालशरण सिंह या गयाप्रसाद शुक्ल ‘ सनेही ', मैथिलीशरण गुप्त या रामचरित उपाध्याय के लिए भाषा का प्रश्न अलग था, उस तरह का प्रश्न छायावादी कवि के सामने नहीं था।
- उसी समय आजमगढ़ में ही प. रामचरित उपाध्याय, गुरु भक्त सिंह ” भक्त ”, श्याम नारायण पाण्डेय, गोरखपुर के मडंन द्दिवेदी आदि अनेक रचनकारों का एक मंडल खड़ा हो गया।
- महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कविता कलाप में पं. लोचन प्रसाद जी की रचनाओं को स्थान दिया है और श्री नाथूराम शंकर शर्मा, लोचन प्रसाद पाण्डेय, रामचरित उपाध्याय, मैथिलीशरण गुप्त और कामता प्रसाद गुरू को कवि श्रेष्ठ घोषित किया है।
- इसी क्रम में रामचरित उपाध्याय ने अपनी रचना ‘ मातृभूमि ' में कुछ इस प्रकार ‘ माँ ' की महिमा का उल्लेख किया है: ‘ है पिता से मान्य माता दशगुनी, इस मर्म को, जानते हैं वे सुधी जो जानते हैं धर्म को।
- श्री हरदेव बाहरी के शब्दों में-“ मैथिलीशरण गुप्त ने भाषा को लाक्षणिकता प्रदान की, ठाकुर गोपालशरण सिंह ने प्रवाह दिया, स्नेही ने उसे प्रभावशालिनी बनाया और रूपनारायण पांडेय, मनन द्विवेदी, रामचरित उपाध्याय आदि ने उसका परिष्कार तथा प्रचार करके आधुनिक हिंदी काव्य को सुदृढ़ किया। ”
- खड़ीबोली काव्य आन्दोलन और स्वच्छंदतावादी काव्यधारा के दौर में छायावाद के पूर्व खड़ीबोली किस प्रकार शैशवावस्था से किशोरावस्था को प्राप्त कर रही थी इसका संकेत श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी, हरिऔध मैथिलीशरण गुप्त और रामचरित उपाध्याय आदि की कृतियों और महावीर छायावाद द्विवेदी की संपादन क्षमता सामर्थ्य और अनुशासन प्रियता तथा खड़ीबोली के मानकीकरण के प्रयत्नों के विवेचन क्रम में अनेक उदाहरणों मे मिलता है।
- जो लोग पिछड़कर या जानबूझकर इस युग से पीछे रह गए थे, खड़ी बोली के उन समर्थ कवियों में पं. नाथूराम शर्मा ‘ शंकर ', श्री हरिऔधजी, पं. रामनरेश त्रिपाठी, पं. माधव शुक्ल, पं. रामचरित उपाध्याय, श्री अनूप शर्मा ‘ अनूप ' श्री गयाप्रसादजी शुक्ल ‘ सनेही ', पं. जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘ हितैषी ' और ठाकुर गोपालशरण सिंहजी प्रथान थे।
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